“कब मनाई जाएगी गणेश चतुर्थी? 26 या 27 अगस्त को, जानें गणपति पूजा का शुभ समय 6 सितंबर को धूमधाम से होगा गणेश विसर्जन”
✨ शॉर्ट अपडेट
गणेश चतुर्थी 2025 की शुरुआत अगस्त के अंतिम हफ्ते में होगी (26 या 27 अगस्त, शुभ मुहूर्त पर निर्भर). उत्सव पूरे 10 दिन तक चलेंगे और समापन 6 सितंबर (शनिवार) को गणेश विसर्जन के साथ होगा। इस दौरान देशभर में पंडाल सजेंगे, आरती और भक्ति गीत गूंजेंगे और गणपति बप्पा को बिदाई दी जाएगी।

📰 गणेश चतुर्थी 2025: पूजा मुहूर्त, तिथि और विसर्जन की पूरी जानकारी
गणेश चतुर्थी 2025 इस साल भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर मनाई जाएगी। यह पर्व देशभर में बड़ी धूमधाम और भक्ति के साथ मनाया जाता है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और बुद्धि, समृद्धि तथा सौभाग्य के देवता माना जाता है। लोग इस अवसर पर गणपति बप्पा की स्थापना कर 10 दिनों तक पूजा-अर्चना करते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
📅 गणेश चतुर्थी 2025 की तिथि और पूजा का समय
हिंदू पंचांग के अनुसार, चतुर्थी तिथि
- आरंभ: 26 अगस्त 2025 को दोपहर 01:54 बजे
- समाप्त: 27 अगस्त 2025 को दोपहर 03:44 बजे
👉 ड्रिक पंचांग के अनुसार, इस साल गणेश चतुर्थी का पर्व बुधवार, 27 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा।
मध्याह्न गणेश पूजा मुहूर्त:
⏰ सुबह 11:05 बजे से दोपहर 01:40 बजे तक (नई दिल्ली समयानुसार)
🏙️ प्रमुख शहरों में गणेश पूजा का मुहूर्त
- मुंबई: 11:24 am से 01:55 pm
- पुणे: 11:21 am से 01:51 pm
- नई दिल्ली: 11:05 am से 01:40 pm
- चेन्नई: 10:56 am से 01:25 pm
- जयपुर: 11:11 am से 01:45 pm
- हैदराबाद: 11:02 am से 01:33 pm
- गुरुग्राम: 11:06 am से 01:40 pm
- चंडीगढ़: 11:07 am से 01:42 pm
- कोलकाता: 10:22 am से 12:54 pm
- बेंगलुरु: 11:07 am से 01:36 pm
- अहमदाबाद: 11:25 am से 01:57 pm
- नोएडा: 11:05 am से 01:39 pm
🙏 गणेश विसर्जन 2025
गणेशोत्सव 10 दिनों तक चलता है और समापन 6 सितंबर 2025 (शनिवार) को गणेश विसर्जन के साथ होगा। इस दिन भक्त गणपति बप्पा को विदाई देते हैं और अगले वर्ष पुनः आगमन का आह्वान करते हैं।
🐘 क्यों मनाते हैं गणेश चतुर्थी?
पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने अपने शरीर के उबटन से भगवान गणेश की रचना की थी और उन्हें स्नानगृह की रक्षा के लिए कहा। जब भगवान शिव लौटे और गणेशजी ने उन्हें रोक दिया तो शिवजी ने क्रोधित होकर उनका सिर काट दिया। बाद में पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने उन्हें हाथी का सिर लगाकर पुनः जीवन प्रदान किया। तभी से गणपति बप्पा को गजमुख रूप में पूजने की परंपरा शुरू हुई।
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